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मानव हृदय की क्रियाविधि

हृदय को दूसरे नाम 'दिल' से भी जाना जाता है। यह ही शरीर के विभिन्न भागों से रुधिर/रक्त को ग्रहण भी करता हैं। यह हमारे शरीर में रक्त को पम्प करने का काम करता है। इस काम के लिए हमारा हृदय हर समय सिकुड़ता तथा शिथिल होता रहता है।

मानव हृदय की क्रियाविधि

मानव अर्थात् हमारा हृदय का मुख्य काम शरीर के विभिन्न भागों से रक्त (Blood) इकट्ठा करके दोबारा उसको (रक्त) शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचाता है। हृदय शरीर में रूधिर को पम्प करने का काम करता है। यह लगातार सिकुड़ता व शिथिल करता है। हृदय/दिल के सिकुड़ने को प्रकुंचन (Systole) व शिथिल होने को अनुशिथिलन (Diastole) कहते हैं।

मानव अर्थात् हमारा हृदय का मुख्य काम शरीर के विभिन्न भागों से रक्त (Blood) इकट्ठा करके दोबारा उसको (रक्त) शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचाता है।

अलिन्दों के शिथिल होने पर रूधिर महाशिराओं से अलिन्दों में, जबकि निलयों के शिथिल होने पर अलिन्द से निलयों में एकत्र हो जाता है। जब हृदय में प्रकुंचन (Systole) होता है तब रक्त अलिन्दों से निलय में व निलय से महाधमनियों में धकेल दिया जाता है। अलिन्दों व निलयों में क्रियाएं एक के बाद एक होती है। निलयों के शिथिल होने को अनुशिथिलन (Diastole) कहते हैं। यह क्रिया उस समय होती है, जब रक्त हृदय/दिल में आकर इकट्ठा होता है। जब निलयों से रक्त को महाधमनियों में धकेल दिया जाता है, उसे प्रकुंचन (Systole) कहते हैं। हमारा हृदय एक मिनट में 72 से 75 बार धड़कता है। यही हृदय स्पन्दन की दर (Rate of heart beat) कहलाती है।

दोहरे रूधिर/रक्त परिसंचरण का महत्व

दोस्तों, हमारे हृदय या दिल में दो अलिन्द व दो निलय होते हैं। हमारे हृदय के दाएं भाग में अशुद्ध रक्त आता है और उसके बाद अशुद्ध रक्त पल्मोनरी चाप द्वारा फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए चला जाता है। इसके बाद  शुद्ध रक्त हृदय के बाएं भाग में पल्मोनरी शिराओं द्वारा आता है। शुद्ध रक्त कैरोटिको-सिस्टैमिक चाप द्वारा हमारे शरीर (Body) में प्रवाहित हो जाता है।

इस तरह से दोहरे/दूसरे परिसंचरण में कहीं भी शुद्ध व अशुद्ध रक्त का मिश्रण न होने के कारण परिसंचरण अधिक प्रभावशाली (efficient) रहता है और रक्त प्रवाह के लिए अधिक दाब उत्पन्न होता है

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